Slide 1

“यह धरती मेरी है, इसे कोई विदेशी पाँव तले नहीं रौंद सकता।”

राजा पोरस

Slide 2

“आपका लक्ष्य केवल सफलता नहीं होना चाहिए, बल्कि दूसरों की मदद करना भी होना चाहिए।”

आचार्य चाणक्य

Slide 3

“कठोर परिश्रम और सही रणनीति से बड़ी से बड़ी जीत संभव है।”

चन्द्रगुप्त मौर्य

Slide 4

“धर्म ही वह मार्ग है, जिससे दुनिया को जीता जा सकता है।”

सम्राट अशोक

Slide 5

“आर्य धर्म की पुनः प्रतिष्ठा ही मेरा उद्देश्य है।”

पुष्यमित्र शुंग

Slide 6

“धर्म की रक्षा के लिए यदि जीवन भी देना पड़े, तो वह सौदा सस्ता है।”

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य

Slide 7

“सच्चा राजा वही जो धर्म और प्रजा की रक्षा करता है।”

यशोधर्मन

Slide 8

“राजा वह नहीं जो केवल राज्य करता है, राजा वह है जो प्रजा की सेवा में स्वयं को समर्पित करता है।”

हर्षवर्धन

Slide 9

“धर्म और देश की रक्षा हमारा प्रथम कर्तव्य है।”

पुलकेशिन II

Slide 10

“राज्य का उत्थान तभी संभव है जब शासक अपने प्रजा के कल्याण में तत्पर हो।”

ललितादित्य मुक्तापीड़

Slide 11

“जब तक एक भी असुर बचेगा, मेरी तलवार नहीं रुकेगी।”

बप्पा रावल

Slide 12

“शब्दों की शक्ति शस्त्रों से अधिक स्थायी होती है।”

अमोघवर्ष नृपतुंग

Slide 13

“धर्म और राष्ट्र की रक्षा ही सम्राट का सबसे बड़ा कर्तव्य है।”

मिहिर भोज

Slide 14

“वीरता और नीति से ही शासन सफल होता है।”

राजेंद्र प्रथम

Slide 15

“शासक का धर्म है अपने प्रजा की रक्षा करना।”

राजा भोज

Slide 16

“जब तक मेरी साँस चलेगी, मैं भारत की भूमि पर विदेशी अधर्मियों का एक क्षण भी नहीं टिकने दूँगा।”

राजा सुहेलदेव

Slide 17

“धर्म और धरती की रक्षा के लिए जीवन न्यौछावर करना मेरा कर्म है।”

पृथ्वीराज चौहान

Slide 18

“राजा वही जो राज्य की मर्यादा के लिए अपने प्राण भी अर्पण कर दे।”

हम्मीरदेव चौहान

Slide 19

“यदि विदेशी अत्याचारी हमारी धरती पर कदम रखे, तो उन्हें वापस जाने की इजाज़त नहीं - बस मिट्टी मिलनी चाहिए।”

नायका देवी

Slide 20

“मरना स्वीकार है, पर पराजित आत्मा से जीना नहीं - यही मेरी चित्तौड़ को अंतिम भेंट है।”

रानी पद्मिनी

Slide 21

“धर्म और देश की रक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं।”

महाराणा हम्मीर सिंह

Slide 22

“धर्म और राष्ट्र की सेवा ही सच्चा राज्यधर्म है यही विजयनगर की नीति होगी।”
“सामरिक बल और बुद्धिमत्ता के बिना कोई साम्राज्य टिक नहीं सकता।”

हरिहर प्रथम और बुक्का राय प्रथम

Slide 23

“धर्म और देश की रक्षा के लिए मरना सर्वोच्च धर्म है।”

राणा सांगा

Slide 24

“भारत की भूमि किसी विदेशी के अधीन नहीं रह सकती - हम उसका स्वाभिमान पुनः जाग्रत करेंगे।”

हेमू विक्रमादित्य

Slide 25

“धर्म की रक्षा ही राजा का परम कर्तव्य है।”

कृष्णदेवराय

Slide 26

“मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक लड़ूंगी।”

रानी दुर्गावती

Slide 27

“जिस देश की स्त्रियाँ अपने बच्चों को तलवार चलाना सिखाती हैं, उस देश को कोई पराजित नहीं कर सकता।”

रानी कर्णावती

Slide 28

“अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए जीवन न्यौछावर कर देना ही सच्ची वीरता है।”

महाराणा प्रताप

Slide 29

“एक रानी का धर्म केवल श्रृंगार करना नहीं, अपने स्वामी को धर्म और वीरता के मार्ग पर बनाए रखना भी होता है।”

फूल बाई राठौर

Slide 30

“देश और धर्म की सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं।”

राजमाता जीजाबाई

Slide 31

“सफलता केवल ताकत से नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता और सही रणनीति से मिलती है।”

छत्रपति शिवाजी महाराज

Slide 32

“राष्ट्र और धर्म की सेवा ही सच्चा जीवन है, शेष सब मोह है।”

वीर दुर्गादास राठौड़

Slide 33

“जहाँ न्याय नहीं, वहाँ धर्म नहीं; जहाँ धर्म नहीं, वहाँ राज्य नहीं।”

शिवप्पा नायक

Slide 34

“धरम रहे धरती रहे, रहे न रहे शरीर। बांचे बांचे तुलसी, छत्रसाल की पीर॥”

महाराजा छत्रसाल बुंदेला

Slide 35

“हमें अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।”

छत्रपति संभाजी महाराज

Slide 36

“सच्चाई और धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति देना हमारा कर्तव्य है।”

गुरु गोबिंद सिंह जी

Slide 37

“जो धरती पर अत्याचार करता है, उसे धरती पर ही खून से धोना होगा।”

बंदा सिंह बहादुर

Slide 38

“सफलता केवल वीरता से नहीं, बल्कि अनुशासन और रणनीति से मिलती है।”

पेशवा बाजीराव

Slide 39

“देश की सेवा और अपने आदर्शों के लिए मुझे किसी भी कीमत पर लड़ना होगा।”

महाराजा नंदकुमार

Slide 40

“एक बालक भी अत्याचार के सामने खड़ा हो सकता है, अगर उसका हृदय सत्य और साहस से भरा हो।”

वीर हकीकत राय

Slide 41

“सैनिक का धर्म है बिना भय के युद्ध करना।”

रघुनाथ राव

Slide 42

“अपने राष्ट्र और सम्मान की रक्षा करना सबसे बड़ा कर्तव्य है।”

पझासी राजा

Slide 43

“मैं अपने प्रजा की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हूँ।”

रानी चेन्नम्मा

Slide 44

“अंग्रेजों के सामने झुकना मेरे लिए अस्वीकार्य है।”

महाराजा चैत सिंह

Slide 45

“मैं अपनी मातृभूमि को परतंत्र नहीं देख सकती, युद्ध ही मेरा अंतिम विकल्प है।”

रानी अवंतीबाई लोधी

1857 से पहले भारत की वास्तविक स्थिति

प्राचीन भारत की छवि

जब हम भारत की स्वतंत्रता की बात करते हैं, तो सामान्यतः हमारा ध्यान 1857 की क्रांति या 1947 की स्वतंत्रता पर केंद्रित हो जाता है। परंतु क्या हमने कभी यह विचार किया है कि भारत को आखिर किसने, कब और कैसे गुलाम बनाया? और उससे भी बड़ा प्रश्न: गुलामी से पहले भारत कैसा था? यह प्रश्न न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आत्मबोध की दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक है। 1857 से पहले भारत केवल एक भूगोल नहीं था - यह विश्व की सबसे पुरानी वैदिक सभ्यता का, चेतना का, और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था।
यह वेबसाइट उसी भूली हुई वास्तविकता को उजागर करने का एक विनम्र प्रयास है - जिसमें हम जानेंगे कि स्वतंत्रता से पूर्व भारत किस प्रकार एक समृद्ध, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और आत्मनिर्भर राष्ट्र था, जिसे योजनाबद्ध ढंग से गुलामी की ओर धकेला गया।

सिंधु घाटी सभ्यता

विश्व में भारत का सबसे पुराना संबंध और इतिहास

भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक प्राचीनतम सभ्यता और मानव सभ्यता की जननी है। सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता (लगभग 7000-2500 ई.पू.) को विश्व की सबसे प्राचीन शहरी सभ्यता माना जाता है। भारत के व्यापार और सांस्कृतिक संबंध प्राचीन समय से रोम, ग्रीस, मिस्र, चीन, अरब, इंडोनेशिया और जापान तक थे।

प्राचीन भारत की संस्कृति

भारत - विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता और संस्कृति

भारत की संस्कृति सतत, अखंड और हजारों वर्षों से जीवंत है। ऋग्वेद (1500 ई.पू. से भी पूर्व) विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। भारतीय संस्कृति में भौतिक और आध्यात्मिक जीवन का संतुलन रहा है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' जैसे सिद्धांतों ने मानवता को सहअस्तित्व का मार्ग दिखाया।

प्राचीन भारत की संस्कृति

भारत का विश्व में सबसे पुराना शैक्षणिक इतिहास

भारत में शिक्षा जीवन का अंग थी। नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में दूर-दूर से छात्र ज्ञानार्जन के लिए आते थे। शिक्षा विज्ञान, गणित, व्याकरण, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, न्याय, संगीत, स्थापत्य आदि विषयों में दी जाती थी। "भारत में सड़कें सुरक्षित हैं, राजा की अदालतें न्यायप्रिय हैं, और शिक्षा समाज का स्वाभाविक अंग है।" - ह्वेनसांग, 7वीं सदी

प्राचीन भारत की संस्कृति

आर्थिक दृष्टि से विश्व में अग्रणी भारत

भारत को "सोने की चिड़िया" कहा जाता था। अंग्रेज़ अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन के अनुसार, 1 ईस्वी में भारत की GDP वैश्विक GDP का 32% थी, और 1700 तक भारत और चीन मिलकर विश्व की आधी अर्थव्यवस्था संभालते थे। भारत का कपड़ा उद्योग, धातु विज्ञान, कृषि और ग्राम आधारित उत्पादन प्रणाली इसे आत्मनिर्भर बनाते थे। उस समय कोई विदेशी ऋण नहीं था, कर न्यूनतम थे, और समाज में सामंजस्य बना हुआ था-ये सभी इसकी प्रमुख विशेषताएँ थीं।

प्राचीन भारत की संस्कृति

सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे पुरातन इतिहास

भारतीय समाज धर्म, संस्कृति और जीवनशैली के समन्वय पर आधारित था, जिसमें चातुर्वर्ण्य, आश्रम व्यवस्था और धर्मशास्त्रों के माध्यम से संतुलन बनाए रखा जाता था। संस्कार, यज्ञ, सेवा और सह-अस्तित्व जीवन का हिस्सा थे, और गाँवों में गुरुकुल, तालाब, मंदिर, सभा मंडप तथा न्याय व्यवस्था जैसी संस्थाएँ विद्यमान थीं। भारत ने कभी बाहरी आक्रमण नहीं किए, बल्कि सदैव ज्ञान, शांति और करुणा का संदेश ही दिया।

प्राचीन भारत की संस्कृति

भारत - विज्ञान, कला, कृषि, धातु, शिल्प, योग और अध्यात्म का जन्मदाता

भारत ने गणित, आयुर्वेद, धातु विज्ञान, वास्तु, योग और कला-संगीत जैसे अनेक क्षेत्रों में विश्व को दिशा दिखाई; गणित में शून्य, दशमलव, बीजगणित और त्रिकोणमिति का विकास, आयुर्वेद में चरक और सुश्रुत संहिता के माध्यम से सर्जरी और नेत्र चिकित्सा, धातु विज्ञान में दिल्ली का आज भी जंगरहित लौह स्तंभ, वास्तु में अजंता-एलोरा, कोणार्क और खजुराहो जैसे अद्भुत स्थापत्य, योग में पतंजलि योगसूत्र और उपनिषदों का योगदान तथा कला-संगीत में नाट्यशास्त्र, भरतनाट्यम और राग-रागिनियों की परंपरा इसका उदाहरण हैं। भारत ने 'भोग नहीं, योग' और 'लालच नहीं, तप' जैसे सिद्धांतों के माध्यम से विश्व को संयम, संतुलन और समाधि का मार्ग दिखाया।

निष्कर्ष:

1857 से पूर्व भारत केवल एक भू-भाग नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की सबसे प्राचीन, सुसंस्कृत, वैज्ञानिक, और संतुलित व्यवस्था का प्रतीक था। आज जब हम "स्वराज" की बात करते हैं, तो उससे पहले के स्वाभिमान और स्वशासन को जानना आवश्यक है। “भारत को जीतना केवल एक भूभाग पर कब्ज़ा करना नहीं, बल्कि मानवता की आत्मा को तोड़ना होगा।” - लॉर्ड मैकाले, 1835

भारत की गुलामी की वास्तविक कहानी: विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता परतंत्रता की ओर कैसे बढ़ी?

भारत की गुलामी की कहानी केवल 400 साल पुरानी अंग्रेज़ी हुकूमत तक सीमित नहीं है। यह कहानी उससे कहीं गहरी, जटिल और दर्दनाक है। भारत जैसे समृद्ध, आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से सशक्त राष्ट्र को धीरे-धीरे राजनीतिक षड्यंत्र, सैन्य आक्रमण, सामाजिक विघटन और सांस्कृतिक हमलों द्वारा गुलामी की ओर ढकेला गया। यह वेबसाईट इसी गुलामी के इतिहास को उसकी वास्तविकता, कालक्रम और प्रभावों सहित प्रस्तुत करती है - ताकि हम जान सकें कि हम गुलाम कैसे बने, और कब से।

प्राचीन भारत की संस्कृति

गुलामी का प्रारंभ: 8वीं से 12वीं सदी - आक्रमणों की पहली लहर

712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण भारत पर पहली इस्लामी आक्रामकता का आरंभ था, जिसके बाद महमूद ग़ज़नी ने 17 बार और मुहम्मद ग़ोरी जैसे अन्य विदेशी आक्रांताओं ने भारत के मंदिरों, नगरों और संपदा को लूटा। 1192 ई. में तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान की हार के साथ ही भारत की उत्तरी सत्ता में विदेशी नियंत्रण की नींव पड़ी। यह समयकाल राजनैतिक विघटन का था, जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था और एकजुट होकर आक्रमणकारियों का सामना नहीं कर सका।

प्राचीन भारत की संस्कृति

1206 से 1526: दिल्ली सल्तनत – राजनीतिक गुलामी की स्थापना

1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा दिल्ली सल्तनत की स्थापना भारत में व्यवस्थित परतंत्रता की शुरुआत मानी जाती है, जिसके बाद ग़ुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैय्यद और लोदी वंशों ने भारत पर शासन किया। इस काल में हजारों मंदिरों का विध्वंस किया गया, जजिया कर लगाया गया, धार्मिक दमन हुआ और हिंदू समाज का मनोबल तोड़ने वाले अनेक कानून लागू किए गए।

प्राचीन भारत की संस्कृति

1526 से 1707: मुगल काल – सत्तात्मक भव्यता और सांस्कृतिक संक्रमण

1526 में बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई जीतकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। अकबर के शासन में जहाँ धार्मिक सहिष्णुता देखने को मिली, वहीं औरंगज़ेब के काल में पुनः धार्मिक दमन, मंदिरों का विध्वंस और जजिया कर का पुनः आगमन हुआ। यह समय हिंदू समाज के भीतर आत्मगौरव को दबाने का दौर था। यद्यपि मराठों, सिखों, राजपूतों और जाटों ने मुगलों को कड़ा प्रतिरोध दिया, लेकिन सम्पूर्ण भारत एकजुट होकर उनका सामना नहीं कर सका।

प्राचीन भारत की संस्कृति

1600 से 1857: ईस्ट इंडिया कंपनी और आर्थिक गुलामी की शुरुआत

1600 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के नाम पर भारत आई, लेकिन उनकी रणनीति भारत को गुलाम बनाने की थी। 1757 में प्लासी के युद्ध (मीर जाफर की गद्दारी) और 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने भारत में प्रशासनिक सत्ता प्राप्त कर ली। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे कृषि, उद्योग, शिक्षा, संस्कृति और अर्थव्यवस्था को अपने अनुसार ढालना शुरू किया। स्थानीय उद्योग तबाह कर दिए गए, कर निर्धारण कठोर हुआ, और न्याय प्रणाली दमनकारी बन गई।

प्राचीन भारत की संस्कृति

1857: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम - गुलामी के विरुद्ध पहला महाजागरण

1857 की क्रांति केवल एक सैन्य विद्रोह नहीं थी, बल्कि यह भारत के गहराते आत्म-स्वत्व की प्रतिक्रिया थी, जिसमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, तात्या टोपे, बहादुर शाह ज़फ़र और कुंवर सिंह जैसे वीरों ने अंग्रेज़ी दमन के विरुद्ध भारत को फिर से जागृत किया। यद्यपि यह क्रांति असफल रही, लेकिन यह भारत की गुलामी के विरुद्ध चेतना की पहली चिंगारी थी।

प्राचीन भारत की संस्कृति

गुलामी के यथार्थ पक्ष - केवल राजनैतिक नहीं, सांस्कृतिक और मानसिक परतंत्रता

भारत की गुलामी केवल राजा और सत्ता की हार नहीं थी, बल्कि यह मन की हार थी, जो सांस्कृतिक हीनता के रूप में प्रकट हुई; यह शिक्षा की हार थी, जिसमें गुरुकुलों को बंद कर मैकाले की नई शिक्षा प्रणाली लागू की गई; यह आर्थिक संहार था, जिसमें भारत का कपड़ा, शिल्प और कृषि क्षेत्र नष्ट कर दिए गए; और यह समाज को विभाजित करने की नीति थी, जिसमें हिंदू-मुस्लिम और जाति आधारित अलगाव फैलाया गया। लॉर्ड मैकाले ने 1835 में कहा था, "भारत को जीतना है तो भारत के आत्मगौरव को तोड़ो, शिक्षा बदलो, संस्कृति बदलो, फिर वह अपने आप हमारी छाया में आ जाएगा।"

निष्कर्ष: हमें अपनी परतंत्रता का इतिहास क्यों जानना चाहिए?

भारत की गुलामी की कहानी हमें यह चेतावनी देती है कि जब कोई राष्ट्र आपसी विभाजन में उलझता है, अपने गौरवशाली अतीत से दूर हो जाता है और आत्मविश्वास खो देता है, तब बाहरी शक्तियाँ उसे बिना युद्ध के भी तोड़ सकती हैं। परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि भारत की आत्मा कभी पूरी तरह गुलाम नहीं हुई - हर युग में कहीं न कहीं प्रतिरोध, पुनरुत्थान और पुनर्जागरण होता रहा, और उसी का परिणाम था 1947 की स्वतंत्रता।